Rajasthan ka Ekikaran Pdf Download – 20 फरवरी 1947 ई. को इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री एटली ने घोषणा की जिसके अनुसार जून, 1948 ई. तक भारत की सत्ता जिम्मेदारी भारतीयों को सौंप देने की बात कही गई थी। Rajasthan ka Ekikaran Pdf के समय Rajasthan में 19 देशी रियासतें, 3 ठिकानें तथा 1 चीफ कमिश्नर क्षेत्र था। यहाँ हम राजस्थान के एकीकरण के चरण और भारत सघ में शामिल होने की प्रक्रिया का अध्ययन करेंगे।
यहाँ हम राजपूताना के राज्यों के भारत के एक अंग बनने के Rajasthan ke Ekikaran Pdf के चरणों का अध्ययन करेंगे। लार्ड माउंटबेटन ने देशी राज्यों के सम्मेलन के लिये नरेन्द्र मण्डल सम्मेलन, दिल्ली, 25 जुलाई 1947 दो प्रकार के प्रपत्र तैयार करवाये।
1.इन्स्ट्रमेण्ट ऑफ एक्सेशन :- यह एक प्रकार का Joining Letter था जिस पर हस्ताक्षर करके कोई भी राजा भारतीय संघ में शामिल हो सकता था।
2.स्टैण्डस्टिल एग्रीमेण्ट :- यह एक प्रकार से यथास्थिति के लिये सहमति पत्र था। 25 जुलाई 1947 को वाइसराय ने दिल्ली में नरेन्द्र मण्डल का एक पूर्ण अधिवेशन बुलाया। उन्होंने हिन्दू बहुल क्षेत्रों के राजाओं को सलाह भी दी कि वे अपने राज्यों का विलय भारत में ही करें।
Rajasthan ka Ekikaran Pdf का परिचय
राजपूताना के देशी राज्यों का भारतीय संघ में विलय
Rajasthan ka Ekikaran Pdf – 25 जुलाई के सम्मेलन का असर राजपूताना के देशी राज्यों पर भी पड़ा, भारतीय संघ में शामिल होने वाला पहला राजपूताना का देशी राज्य बीकानेर था। 7 अगस्त, 1947 को बीकानेर महाराजा शार्दूलसिंह ने Instrument Of Accession पर हस्ताक्षर कर दिये।
उदयपुर रियासत का विलय : धौलपुर नरेश उदयभान सिंह के प्रयासों से जोधपुर के शासक हनुवंत सिंह का मन जोधपुर को पाकिस्तान का हिस्सा बनने या स्वतंत्र रहने का था। जोधपुर के महाराजा हनुवंतसिंह ने महाराणा भूपालसिंह को पाकिस्तान में शामिल होने के लिये पत्र लिखा किंतु महाराणा ने इसका जबाव देते हुए लिखा कि ‘मेरी इच्छा तो मेरे पूर्वजों ने निश्चित कर दी थी।
धौलपुर रियासत का विलय : जब धौलपुर के महाराज राणा को पता चला कि जोधपुर तथा भोपाल के शासकों ने सम्मिलन पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये हैं तो उसने भी 14 अगस्त, 1947 को भारत में विलय को स्वीकार कर लिया।
Rajasthan ka Ekikaran kab hua- Historical Background
राजस्थान यूनियन’ नाम संघ बनाने का प्रयास
मेवाड़ महाराणा भूपालसिंह ने राजस्थान, गुजरात और मालवा के छोटे-बड़े राज्यों को मिलाकर एक बड़ी इकाई ‘राजस्थान यूनियन‘ बनाने के उद्देश्य से 25 जून 1946 को उदयपुर में 22 राजाओं का सम्मेलन आयोजित किया। महाराणा ने के.एम. मुंशी को अपना संवैधानिक सलाहकार भी नियुक्त किया, पर अंतिम रूप से यह योजना भी असफल रही।
राजपूताना संघ बनाने का प्रयास –
राजपूताना संघ राजस्थान यूनियन की तरह raj ka ekikaran के देशी राज्यों को एक जाजम पर लाने का प्रयास था। कोटा के महाराव भीमसिंह ने हाड़ौती संघ के निर्माण के लिए प्रयत्न किये। वह कोटा बून्दी और झालावाड़ राज्यों को मिलाकर एक संयुक्त राज्य स्थापित करने के लिए इच्छुक था।
इसी प्रकार डूंगरपुर के महारावल लक्ष्मणसिंह ने डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, कुशलगढ़ और प्रतापगढ़ के राज्यों को मिलाकर बागड़ राज्य के निर्माण के लिए प्रयास किये ये सभी प्रयास असफल रहे।
बीकानेर शासक लुहारू राज्य को बीकानेर राज्य में मिलाने के लिए इच्छुक था। जून, 1947 ई. में लुहारु नवाब ने बीकानेर रियासत के साथ प्रशासनिक समझौता किया था।
Importance of Ekikaran Rajasthan Pdf
Rajasthan ka Ekikaran Pdf- अखिल भारतीय देशी राज्य प्रजा परिषद् ने 21-23 अक्टूबर, 1945 ई. को स्थाई समिति की बैठक जयपुर में सम्पन्न हुई जिसमें निर्णय लिया गया कि सम्भावित भारतीय संविधान निर्मात्री सभा में राज्यों के प्रतिनिधियों को जनता द्वारा चुन कर भेजे जाने की व्यवस्था होनी चाहिए।
पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में 31 दिसम्बर, 1945 से 2 जनवरी, 1946 ई. कोअखिल भारतीय देशी राज्य प्रजा परिषद का उदयपुर में सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में राज्यों की स्वतंत्र अस्तित्व हेतु मापदण्ड पर विचार किया गया, परन्तु कोई निर्णय नहीं लिया जा सका।
18-19 सितम्बर, 1946 ई. को दिल्ली की बैठक में परिषद की स्थायी समिति ने राज्यों की जीव्यता के लिए 50 लाख जनसंख्या और तीन करोड़ वार्षिक आय को होना आवश्यक बताया।
इस सिलसिले में अखिल भारतीय राज्य प्रजा परिषद की राजस्थान प्रान्तीय शाखा की कार्यकारिणी ने अपनी 3 नवम्बर, 1946 ई. की बैठक में प्रस्ताव पारित किया कि राजस्थान की कोई भी रियासत आधुनिक प्रगतिशील राज्यों की श्रेणी में नहीं आंकी जा सकती। अतः राजस्थान की समस्त रियासतों तथा अजमेर- मेरवाड़ा के क्षेत्र को मिलाकर एक संघ का निर्माण करना चाहिए।
इस बीच भारत सरकार ने भी घोषणा की कि स्वतन्त्र भारत में 1 करोड़ वार्षिक आय और 10 लाख जनसंख्या वाली रियासत अपना अलग अस्तित्व रख सकती है।
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Rajasthan ka Ekikaran Pdf प्रथम चरण – मत्स्य संघ
मत्स्य संघ राजस्थान में शामिल हुआ – 17 मार्च, 1948
मत्स्य संघ का निर्माण – अलवर, भरतपुर, धौलपुर व करौली और नीमराणा ठिकाना को मिलाकर किया गया।
वहीं अलवर राज्य के शासक तेजसिंह व उनका दीवान डॉ. बी.एन. खरे 30 जनवरी, 1948 ई. को महात्मा गांधी की हत्या के आरोपियों की मदद करने के मामले में भारत सरकार द्वारा दोषी माने जा रहे थे (यद्यपि जांच के बाद उन्हें निर्दोष पाया गया।
भरतपुर के शासक बृजेन्द्रसिंह के विरूद्ध भी शिकायतें थी, अतः भरतपुर का शासन भारत सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एस. एन. सप्रू को भरतपुर का प्रशासक बनाया गया।
27 फरवरी, 1948 ई. को इन चारों राज्यों के शासकों को दिल्ली बुलाया गया और उनके समक्ष संघ निर्माण का प्रस्ताव रखा गया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। 28 फरवरी, 1948 ई. को संघ सम्बन्धी दस्तावेज पर चारों शासकों ने हस्ताक्षर कर दिये।
मत्स्य संघ का उद्घाटन केन्द्रीय मंत्री एन.वी. गाडगिल (केन्द्रीय) खनिज व विद्युत मंत्री) द्वारा भरतपुर फोर्ट में किया गया इस उद्घाटन में देरी हुई तथा मत्स्य संघ ने 18 मार्च से विधिवत कार्य प्रारम्भ किया।
इसे मत्स्य संघ नाम के.एम. मुंशी के सुझाव पर दिया गया।
मत्स्य संघ की राजधानी (Matsya Sangh Ki Rajdhani) – | (विराटनगर) अलवर |
मत्स्य संघ का राजप्रमुख | धौलपुर महाराजा उदयभानसिंह |
मत्स्य संघ काउपराजप्रमुख | करौली महाराजा गणेशपाल |
मत्स्य संघ का प्रधानमंत्री | शोभाराम कुमावत |
Rajasthan ka Ekikaran Pdf द्वितीय चरण – ‘पूर्व राजस्थान संघ’
पूर्व राजस्थान संघ कब बना था – 25 मार्च, 1948
सबसे पहले राजस्थान शब्द का प्रयोग एकीकरण के दूसरे चरण में किया गया।
‘राजस्थान संघ’ का निर्माण में रियासतें – बाँसवाड़ा, बूंदी, डूंगरपुर, झालावाड़, कोटा, प्रतापगढ़, टोंक, किशनगढ़ व शाहपुरा सहित 9 रियासतों तथा लावा व कुशलगढ़ ठिकानों को मिलाकर किया गया।
बूंदी रियासत की विशेष रूप से इच्छा थी कि उदयपुर भी इस संघ का हिस्सा बने, किंतु उदयपुर की मंशा एक स्वतंत्र राज्य के रूप में रहने की थी अतः वह इसमें शामिल नहीं हुआ।
बाँसवाड़ा महारावल चन्द्रवीर सिंह ने विलयपत्र पर हस्ताक्षर करते हुए कहा “मैं अपने डेथ वारण्ट पर हस्ताक्षर कर रहा हूँ।”
पूर्व राजस्थान संघ की राजधानी | कोटा |
पूर्व राजस्थान संघ का राजप्रमुख | कोटा महाराव भीमसिंह |
पूर्व राजस्थान संघ का उपराजप्रमुख | बूंदी महाराजा बहादुरसिंह |
पूर्व राजस्थान संघ का कनिष्ठ उपराजप्रमुख | डूंगरपुर महारावल लक्ष्मणसिंह |
पूर्व राजस्थान संघ का प्रधानमंत्री | गोकुललाल असावा |
उद्घाटन | एन.बी. गाडगिल द्वारा कोटा दुर्ग |
पूर्व राजस्थान संघ का क्षेत्रफल | 16807 वर्ग KM |
जनसंख्या | लगभग 23.50 लाख |
वार्षिक आय | 2.00 करोड़ रूपए |
Rajasthan ka Ekikaran Pdf तृतीय चरण – ‘संयुक्त राजस्थान संघ’
निर्माण – 18 अप्रैल, 1948
उदयपुर के शासक भूपालसिंह व प्रजामंडल के नेताओं के बीच मंत्रिमंडल गठन को लेकर गंभीर मतभेद थे, अतः भूपाल सिंह ने भी राजस्थान संघ में विलय का मानस बना लिया।
संयुक्त राजस्थान के उद्घाटन के तीन दिन पश्चात् (28 मार्च) उदयपुर के महाराणा ने औपचारिक रूप से संघ में सम्मिलित होने के लिए अपनी स्वीकृति रियासती विभाग के पास भेज दी। अब मेवाड़ दरबार और भारत सरकार के बीच मेवाड़ विलय सम्बन्धी सम्भावित शर्तों पर विचार-विमर्श आरम्भ हुआ।
महाराणा की ओर से तीन प्रमुख माँगें प्रस्तुत की गयीं –
1.पहली माँग यह थी कि महाराणा को संयुक्त राजस्थान का वंशानुगत राजप्रमुख बनाया जाये।
2.दूसरी यह थी कि उन्हें 20 लाख रुपये वार्षिक निजी खर्च राशि (प्रिवीपर्स) के रूप में दी जाये और
3. तीसरी यह थी कि उदयपुर को संयुक्त राजस्थान की राजधानी बनाया जाये।
रियासती विभाग ने महाराणा की सभी माँगों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाया। महाराणा को संयुक्त राजस्थान का आजन्म राजप्रमुख बनाना स्वीकार कर लिया गया, परन्तु उसके उत्तराधिकारी को यह अधिकारी नहीं दिया गया।
रियासती विभाग की निर्धारित नीति के अनुसार वार्षिक 10 लाख रुपयों से अधिक प्रिवीपर्स की धनराशि किसी को देय नहीं थी, परन्तु महाराणा के लिए रास्ता निकाला गया।
महाराणा को 10 लाख रुपये वार्षिक प्रिवीपर्स, 5 लाख रुपये वार्षिक राजप्रमुख के पद का भत्ता और शेष 5 लाख रुपये वार्षिक मेवाड़ राजवंश की गरिमा व परम्परा के अनुरूप कार्यों में खर्च के लिए देना स्वीकार कर लिया गया। उदयपुर को संयुक्त राजस्थान की राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया।
इसके बाद राजस्थान संघ में 18 अप्रैल, 1948 को उदयपुर रियासत का विलय कर संयुक्त राजस्थान का निर्माण हुआ।
मेवाड़ के मंत्रिमण्डल में गोकुल लाल असावा (शाहपुरा), प्रेमनारायण माथुर, भूरेलाल बयाँ, मोहनलाल सुखाड़िया (उदयपुर), भोगीलाल पण्ड्या (डूंगरपुर), अभिन्न हरि (कोटा), बृजसुन्दर शर्मा (बूंदी) को सम्मिलित किया गया।
यह 11 माह तक कार्यरत रहा।
संयुक्त राजस्थान संघ की राजधानी | उदयपुर |
संयुक्त राजस्थान संघ का राजप्रमुख | महाराणा मेवाड़-भूपालसिंह |
उपराजप्रमुख | कोटा महाराव भीमसिंह |
कनिष्ठ उपराजप्रमुख | 1. बूंदी महाराव बहादुरसिंह 2. डूंगरपुर महारावल लक्ष्मणसिंह |
संयुक्त राजस्थान संघ के प्रधानमंत्री | माणिक्यलाल वर्मा |
संयुक्त राजस्थान संघ का उद्घाटन | पंडित जवाहरलाल नेहरू |
संयुक्त राजस्थान संघ का क्षेत्रफल | 29,777 वर्ग मील |
जनसंख्या | 42,60,918 |
वार्षिक आय | 3.16 करोड़ रूपए |
Rajasthan ka Ekikaran Pdf चतुर्थ चरण -‘वृहत् राजस्थान संघ’
निर्माण – 30 मार्च, 1949
‘वृहत् राजस्थान संघ’ में ‘मत्स्य संघ’ एवं ‘संयुक्त राजस्थान’ के गठन के बाद जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर एवं सिरोही राज्य ही एकीकरण की प्रक्रिया से बचे थे।
मई, 1948 में, सिरोही राज्य का प्रबंध मुम्बई सरकार को सौंप दिया गया। जैसलमेर राज्य का शासन भारत सरकार के हाथ में ही था।
जयपुर, जोधपुर, एवं बीकानेर राज्य रियासती विभाग के निर्धारित मापदण्डों के अनुसार संघ के अंतर्गत स्वतंत्र रहने के अधिकारी थे। लेकिन इन राज्यों की जनता एवं जनप्रतिनिधि इनका विलय कर वृहत् राजस्थान का निर्माण करना चाहते थे।
दिसम्बर, 1948 में रियासती विभाग के सचिव वी.पी. मेनन ने जयपुर, जोधपुर और बीकानेर के शासकों से वृहत् राजस्थान के निर्माण के संबंध में वार्ता प्रारंभ की।
11 जनवरी, 1949 को उसने जयपुर महाराजा को वृहत् राजस्थान के लिए तैयार कर लिया। बीकानेर और जोधपुर के शासकों ने भी आनाकानी के बाद विलय के प्रारूप पर अपनी स्वीकृति दे दी।
14 जनवरी, 1949 को उदयपुर में एक जनसभा में सरदार पटेल ने वृहत् राजस्थान के निर्माण की घोषणा कर दी।
3 फरवरी, 1949 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने गोकुलभाई भट्ट, जयनारायण व्यास, माणिक्यलाल वर्मा और हीरालाल शास्त्री को दिल्ली में एक बैठक में बुलाया।
इस बैठक में जयपुर महाराजा सवाई मानसिंह को राजस्थान का जीवन पर्यंत राजप्रमुख, मेवाड़ महाराणा भूपालसिंह को महाराज प्रमुख, जोधपुर महाराजा हनुवंतसिंह और कोटा महाराव भीमसिंह को वरिष्ठ उपराजप्रमुख तथा बूंदी महाराव बहादुरसिंह और डूंगरपुर महारावल लक्ष्मणसिंह को कनिष्ठ उपराजप्रमुख बनाने का निर्णय किया गया।
राजधानी को लेकर जयपुर व जोधपुर के मध्य विवाद उत्पन्न हुआ, तो बी. आर. पटेल समिति की अनुशंसा पर जयपुर को राजधानी बनाया। इस समिति में तत्कालीन पंजाब राज्य के मुख्य सचिव बी. आर. पटेल, लेफ्टीनेंट कर्नल एच. सी. पुरी व एच. पी. सिन्हा शामिल थे।
एकीकरण पूर्ण हुआ तब 1957 में जयपुर की बजाय अजमेर को राजधानी बनाने की मांग की गई, तो भारत सरकार ने पी. सत्यनारायण राव समिति का गठन किया, जिसमें पी. सत्यनारायण राव, वी. विश्वनाथन व वी. के. गुप्ता शामिल थे।
पी. सत्यनारायण राव समिति की सिफारिश पर राजधानी जयपुर बनी रहे और राजस्व मण्डल व राजस्थान लोक सेवा आयोग का कार्यालय जयपुर से अजमेर तथा हाईकोर्ट जयपुर से जोधपुर स्थानांतरित होने चाहिए।
वृहत् राजस्थान का मुख्यमंत्री मनोनीत | हीरालाल शास्त्री |
वृहद राजस्थान का उद्घाटन | सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सिटी पैलेस जयपुर |
राजस्थान दिवस | 30 मार्च, 1949 |
7 अप्रैल, 1949 को हीरालाल शास्त्री ने अपने मंत्रिमंडल क गठन किया, जिसमें सिद्धराज ढड्ढा (जयपुर), प्रेमनारायण माथुर भूरेलाल बया (उदयपुर), फूलचन्द बाफना, नरसिंह कच्छावा रावराजा हनुवंतसिंह (जोधपुर), रघुवरदयाल गोयल (बीकोनर और वेदपाल त्यागी (कोटा) सम्मिलित थे।
Rajasthan ka Ekikaran Pdf पंचम चरण- संयुक्त वृहत्तर राजस्थान
निर्माण – 15 मई, 1949
मत्स्य संघ अपने गठन के बाद से ही निरन्तर अशांत था, अतः 13 फरवरी, 1949 को मत्स्य संघ के शासक एवं मंत्रियों को दिल्ली बुलाया और मत्स्य संघ के उत्तरप्रदेश या राजस्थान में विलय के लिए वार्ता की अलवर और करौली के शासकों ने राजस्थान में विलय के लिए सहमति व्यक्त की।
मगर भरतपुर व धौलपुर के शासक अपने राज्यों को राजस्थान में विलय के लिए सहमत नहीं हुए। 23 मार्च, 1949 ई. को इन शासकों से वी.पी. मेनन ने पुनः वार्ता की।
भरतपुर ने भी राजस्थान में विलय की सहमति दे दी। धौलपुर के शासक ने प्रजा की इच्छानुसार निर्णय लेने की बात रखी।
भरतपुर और धौलपुर की जनता की राय जानने के लिए ‘शंकरराव देव समिति’ गठित की गई। अन्य सदस्य आर. के. सिद्धावा और प्रभुदयाल ।
भारत सरकार ने शंकरराव देव समिति की अनुशंसा पर मत्स्य संघ को वृहत् राजस्थान में 15 मई, 1949 को मिला दिया।
इससे पूर्व 10 मई, 1949 को मत्स्य संघ के चारों शासकों ने वृहद राजस्थान में मत्स्य संघ के विलय पर अपनी सहमति प्रदान कर दी थी।
वहाँ के प्रधानमंत्री शोभाराम को शास्त्री मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया। इसे संयुक्त वृहद राजस्थान नाम दिया गया।
Rajasthan ka Ekikaran Pdf पष्ठम चरण-‘राजस्थान संघ’
निर्माण – जनवरी, 1950
संयुक्त वृहत्तर राजस्थान में आबू व दिलवाड़ा तहसीलों को छोड़कर शेष सिरोही को मिला दिया गया।
इस निर्णय के विरूद्ध सिरोही और राजस्थान में व्यापक आंदोलन हुआ। आंदोलन में गोकुलभाई भट्ट और बलवंत सिंह मेहता ने भी भाग लिया।
26 जनवरी, 1950 ई. को भारत के संविधान लागू होने पर राजपूताना के इस भू-भाग के लिए ‘राजस्थान’ शब्द व इसकी राजधानी ‘जयपुर’ को संविधान के द्वारा विधिवत् घोषित किया गया।
राजस्थान शब्द प्रयुक्त करने व राजधानी जयपुर बनाने के लिए डॉ. पी. सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई और इन्हीं की सिफारिश पर संवैधानिक तौर पर राज्य का नाम राजस्थान रखा गया।
Rajasthan ka Ekikaran Pdf सप्तम चरण – ‘राजस्थान’
निर्माण – 1 नवम्बर, 1956
राज्य पुनर्गठन आयोग (फैजल अली आयोग) ने अजमेर के नेताओं के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया और सिफारिश की कि अजमेर राजस्थान में मिला देना चाहिये।
इस प्रकार 1 नवम्बर, 1956 को माउण्ट आबू क्षेत्र ही साथ अजमेर मेरवाड़ा भी राजस्थान में मिला दिया गया।
राज्य पुनर्गठन आयोग (फैजल अली की अध्यक्षता में गठित) की सिफारिशों के अनुसार सिरोही की आबू व दिलवाड़ा तहसीलें, मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की मानपुरा तहसील का सुनेल टप्पा व अजमेर मेरवाड़ा क्षेत्र राजस्थान में मिला दिया गया तथा राज्य के झालावाड़ जिले का सिरोंज क्षेत्र मध्यप्रदेश में विलय कर राजस्थान का एकीकरण पूर्ण हुआ।
26 जनवरी, 1950 ई. को भारत के संविधान लागू होने पर राजपूताना के इस भू-भाग के लिए ‘राजस्थान’ शब्द व इसकी राजधानी ‘जयपुर’ को संविधान के द्वारा विधिवत् घोषित किया गया।
राजस्थान शब्द प्रयुक्त करने व राजधानी जयपुर बनाने के लिए डॉ. पी. सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई और इन्हीं की सिफारिश पर संवैधानिक तौर पर राज्य का नाम राजस्थान रखा गया।
इसी दिन राजशाही के अन्तिम अवशेष ‘राजप्रमुख पद’ को 7वें संविधान संशोधन द्वारा समाप्त कर राज्यपाल पद सृजित कर लोकतंत्र की स्थापना हुई तथा गुरुमुख निहाल सिंह की पहले राज्यपाल के पद पर नियुक्ति हुई। इस समय राजस्थान के मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया थे।
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